पंचपर्व महोत्सव "दीपावली"
*पंचपर्व महोत्सव "दीपावली"*
अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाया जाने वाला यह पर्व दीपावली या दीपोत्सव कहलाता है । एक प्रकाश उत्सव उत्सव है जो बच्चों का हृदय विशेषकर विशेषकर आकर्षित करता है घरों में हाथों पर चौराहों पर दुकानों पर सब जगह दीप की पंक्तियां शोभायमान रहती पंक्तियां शोभायमान रहती है । यह एक शरदीय उत्सव है । वर्षा ऋतु में सभी जगह वर्षा के प्रभाव से अस्वच्छता कीड़े मकोड़ों की वृद्धि हो जाती है । जब शरद ऋतु आता है तो लोग घर और आंगन को साफ करते हैं । वह घरों को, किवाड़ और खिड़कियों को रंगते हैं जहां-तहां बिखरे कूड़ा करकट उनको बिखरे कूड़ा करकट उनको हटाते हैं ।
लोगों की ऐसी मान्यता है मान्यता है की श्री रामचंद्र जी रावण वध के बाद जब पहली बार अयोध्या आए तो प्रथम दीपोत्सव का आयोजन किया गया । उसी समय से आज तक बुराई पर अच्छाई की जीत अंधकार पर प्रकाश की जीत मानकर हम लोग इस पर पर को मनाते आ रहे हैं । इस रात्रि को लोग सुख रात्रि भी कहते हैं मिथिला और बंगाल प्रदेश में कुछ लोग इस दिन काली पूजा भी करते हैं ।
दीपावली महोत्सव धनतेरस से अर्थात कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी से प्रारंभ होकर भाई दूज तक अर्थात कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीय तिथि चलने बाला एक महत्वपूर्ण। यह पांच पर्वों पर्वों का मिश्रण है । इस पंच पर्व में पहले दिन त्रयोदशी को आयुर्वेद और औषधियों के देवता धनवंतरि की पूजा की जाती है। दूसरे दिन यानी चतुर्दशी तिथि पर धर्मराज यम की पूजा और दीपदान किया जाता है। इसके अगले दिन यानी कार्तिक माह की अमावस्या पर सुख समृद्धि और धन की देवी श्री अर्थात लक्ष्मी जी की पूजा के साथ दीपावली मनाई जाती है। दिवाली के दूसरे दिन अर्थात शुक्ल पक्ष पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है। इसके अगले दिन अर्थात द्वितिया को भाई-दूज के त्योहार के साथ ही दीपावली महोत्सव पूरा हो जाता है।
यह महापर्व का हर दिन जीवन की एक महत्वपूर्ण बात समझाता है। इस महोत्सव में सेहत, मृत्यु, धन, प्रकृति, प्रेम और सद्भाव का संदेश छुपा है। ये पाँच आवश्यक बातें जीवन को पूर्ण बनाती हैं। लक्ष्मी का मतलब रुपया, पैसा, साेना-चांदी, के भण्डार से होने लगा है, लेकिन वास्तविकता इससे अलग है। महालक्ष्मी से अभिप्राय हो है सुख, शांति और समृद्धि से। यदि किसी के पास बहुत सारा धन है लेकिन सुख एवं शांति न हो तो उसे धनलक्ष्मी से सम्पन्न नहीं कहा जा सकता। अत: दीपावली पर्व पर लक्ष्मी पूजा सिर्फ धन और सोना-चांदी प्राप्ति की भावना से न की जानी चाहिए । इसी कारण से दीपावली को पांच भागों में विभक्त किया गया है।
*1 धन्वन्तरि त्रयोदशी (धनतेरस)*
दीपावली पूजन की शुरुआत धनतेरस अर्थात धन्वन्तरि त्रयोदशी से होती है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। भगवान धन्वन्तरि की पूजा के पीछे यह रहस्य है कि सुख, शांति एवं समृद्धि की अनुभूति के लिए सर्वप्रथम स्वस्थ रहना ज़रूरी है। इसलिए मुद्रा प्राप्ति, धन प्राप्ति से पहले आरोग्य के देवता कीपूजा की जाती है ताकि हम निरोग एवं स्वस्थ रहें।
भगवान धन्वन्तरि कलश ले कर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है. कहीं - कहीं लोक मान्यता के अनुसार (धनतेरस यानी धन का तेरह गुणा) यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है.
इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं. दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग- बगीचों में या खेतों में बोते ।
*2 रूप चौदस (यम दिया)*
इसदिन गृहिणियां उबटन लगाकर स्नान करती हैं। लक्ष्मी - पूजन से पूर्व गृह - लक्ष्मी का शृंगार आवश्यक है। जब घर में मेहमान आते हैं तब भी स्वयं को ठीक से रखती हैं और जिस दिन समृद्धि की देवी लक्ष्मी जी आने वाली हों उससे पहले स्वरूप को निखारकर रखना आवश्यक है। इसलिए यह दिन रूप चौदस कहलाता है। इस दिन शाम को धर्मराज (यम) के लिए दीपदान किया जाता है। दीपदान के साथ मृत्यु और उसके देवता यमराज को याद किया जाता है।ऐसा करने के पीछे भावना होती है कि सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य पृथ्वी पर ही रह जाता है। मृत्यु ही अन्तिम गति है। ऐसा इसलिए किया जाता है , कि हम लक्ष्मी जी से उतनी ही कामना करें जितना जीवन यापन के लिए आवश्यक है। इससे मनुष्य मन में धन - संपदा और समृद्धि से मोह उत्पन्न नहीं होता है।
*3 महालक्ष्मी पूजन (दीपावली)*
दीपावली की पूजा में लक्ष्मीजी के साथ श्री गणेश और मां सरस्वती भी होती हैं। रहस्य यह है , कि लक्ष्मीजी से अभिप्राय हम धन-दौलत से ही समझते हैं लेकिन धन दौलत कभी भी सुख, शान्ति सुकून एवं समृद्धि प्रदान नहीं कर सकती। यह आवश्यक है कि हमारी बुद्धि सही रहे तथा अच्छे -बुरे का ज्ञान होता रहे। इसलिए लक्ष्मी - पूजन से पूर्व बुद्धि के देवता गणेश जी एवं ज्ञान की देवी सरस्वती जी का पूजन करते हैं ताकि सद्बुद्धि के साथ ज्ञान-पूर्वक धन का सदुपयोग कर सकें। लक्ष्मी पूजन में भी विष्णु के साथ बैठी कमलासना लक्ष्मी जी की ही पूजा करते हैं। दूसरी उलूकवाहिनी लक्ष्मी होती हैं जो सदैव अंधकार चाहती हैं। अत: उलूकवाहिनी लक्ष्मी जी की पूजा नहीं करनी चाहिए यह वास्तव में लक्ष्मी जी की ही बहन है जिसे लोग दलिद्रा के नाम से भी जानते हैं। लक्ष्मी पूजा की अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त के पूर्वार्ध में दलिद्रा बाहर करने की परंपरा भी है ।
*4 गोवर्धन पूजा (गोधन)*
लक्ष्मी पृथ्वी ही है और इसके लिए प्रकृति की पूजा एवं रक्षा ज़रूरी है जिसके निमित्त इन्द्र देवता की पूजा के स्थान पर भगवान श्री कृष्ण के निर्देश से गो-वर्धन पर्वत को प्रतीक बनाकर प्रकृति एवं पर्यावरण का संरक्षण करने के मंतव्य के साथ यह पूजा की जाती है। इस दिन किसान बैल, गाय आदि की पूजा करते हैं। ये त्योहार प्रकृति का सम्मान करना सिखाता है।
5 यम द्वितीया (चित्रगुप्त पूजा, भैया दूज)
कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया को यम द्वितीया और भैया - दूज के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथानुसार इस दिन भगवान यम बहन यमुना के घर मिलने जाया करते हैं। यमलोक के राजा यमराज के प्रमुख सहायक चित्रगुप्त की पूजा भी, इसी दिन की जाती है। चित्रगुप्त यमराज का सारा लेखा-जोखा रखते हैं इसलिए सभी व्यापारी लोग दवात कलम एवं बही खाते की पूजा इस दिन करते हैं। वर्ष-भर का हिसाब भी लिख कर रखा जाता है। कायस्थ जाति के लिए यह एक बहुत ही प्रमुख पर्व है इस दिन वे वही खाते की पूजा कर कॉपी कलम को हाथ तक नहीं लगाते हैं ।
वास्तव में यह पंच पर्व जो वास्तव में दीपावली के नाम से प्रसिद्ध है प्रेम सद्भाव और सहायता का भी प्रतिक माना गया है।
वर्षा काल में बढ़े हुए कीड़े-मकोड़ों को प्राचीन काल में तेल की बत्तियों से मारा जाता था । जिससे पर्यावरण शुद्ध होता था । परंतु आज तो लोग मोमबत्ती और बिजली के बल्ब का प्रयोग करते हैं । खुशी दर्शाने के लिए पटाखे फोड़ते हैं , इससे वातावरण में प्रदूषण और बढ़ जाता है । कीड़ों का नाश भी नहीं होता तथा वातावरण भी विषैला हो जाता है । ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ जाता है । अतः अपनी रक्षा के लिए पर्यावरण की रक्षा करना भी हमारा परम कर्तव्य है ।
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